कहानी संग्रह ' तरकश '

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     किस्सा नंबर 1 – देसी चुड़ैल 

    चल, आज एक असली वाला देसी चुड़ैल का किस्सा सुनाता हूँ, जो मेरे गाँव के पास वाला इलाका है – फिरोज़पुर रोड के साथ वाला पुराना पीपल का पेड़। लोग आज भी उस रास्ते से रात को अकेले नहीं निकलते।
    किस्सा है 2012-13 का…
    नाम था बंटी, ट्रक ड्राइवर। रोज़ाना लुधियाना से दिल्ली वाला रूट मारता था। बड़ा हट्टा-कट्टा, बिल्कुल डरपोक नहीं। सबको बोलता था, “ओय चुड़ैल-वुड़ैल कुछ नहीं होता, सब फालतू बातें हैं।”
    एक रात करीब 2:30 बजे, उसका ट्रक उसी पीपल के पेड़ के पास से गुज़र रहा था। अचानक ट्रक की लाइटें फ्लिकर करने लगीं। बंटी ने गाली बकी और साइड में ट्रक रोका, हुड खोल के देखा। कुछ समझ नहीं आया।
    तभी दूर से बहुत मीठी आवाज़ आई –
    “ओ जी… ओ ट्रक वाले जी… ज़रा लिफ्ट दे दो ना… बहुत ठंड लग रही है।”
    बंटी ने मुँह ऊपर किया।
    पेड़ के नीचे एक औरत खड़ी थी – पूरी सफ़ेद साड़ी, लंबे काले बाल हवा में उड़ रहे थे, चाँद की रोशनी में चेहरा बिल्कुल गोरा और ख़ूबसूरत।
    बंटी का दिल धक से हुआ, पर उसने सोचा – “यार रात को कोई औरत अकेली है, मदद कर देनी चाहिए।”
    उसने कहा, “चढ़ जा, कहाँ जाना है?”
    औरत हल्के से मुस्कुराई और केबिन में चढ़ गई।
    जैसे ही दरवाज़ा बंद हुआ, बंटी को ज़ोर की बदबू आई – जैसे सड़ता हुआ माँस।
    उसने साइड से देखा – औरत के पैर… उल्टे थे! पंजे पीछे की तरफ़।
    बंटी का ख़ून जम गया।
    उसने तुरंत हनुमान चालीसा पढ़ना शुरू किया (याद थी उसे पूरी)।
    औरत चिल्लाई, “रुक जा… आज तो तुझे ले के जाऊँगी!”
    और उसका चेहरा अचानक भयानक हो गया – आँखें लाल, मुँह बहुत चौड़ा।
    बंटी ने पूरा एक्सीलेटर मार दिया। ट्रक भागा।
    30-40 किलोमीटर तक वो चुड़ैल ट्रक के साथ-साथ दौड़ती रही – कभी शीशे पे मुँह मारती, कभी ऊपर चढ़ के छत पीटती। बंटी बस हनुमान चालीसा पढ़ता रहा, गला फट गया उसका।
    फिर अचानक सुबह के 4:30 बजे अज़ान की आवाज़ आई (कहीं मस्जिद थी पास में)।
    चुड़ैल ज़ोर - ज़ोर से चीखने लगी, हसने लगी कैसे कोइ उसे जगा रहा हो- चिड़ा रहा हो।
    बंटी ने मंदिर में से मोर पंख उठके उसे डराया और वह हवा में ग़ायब हो गई।
    बंटी ने ट्रक रोका तो देखा – उसकी शर्ट पर लंबे-लंबे नाख़ूनों के निशान थे, पीठ पे ख़ून निकल रहा था।
    उस दिन के बाद उसने कभी रात को वो रास्ता नहीं लिया।
    और आज भी जब कोई उससे पूछता है, तो बस इतना बोलता है:
    “भाई, चुड़ैल होती है… और जो नहीं मानता, उसको एक बार बुला के दिखा दूँगा।”
    अब तू बता… रात को अकेले उस पीपल के पास से गुज़रने की हिम्मत है क्या? 😏🌚
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     किस्सा नंबर 2 – अनजान  वाली चुड़ैल 

    ये 2018 की बात है। जगह है अमृतसर से जालंधर वाला पुराना बाईपास। वहाँ एक बहुत पुराना पीपल है, लोग कहते हैं उसमें 100 साल पुरानी चुड़ैल रहती है। नाम था उसका “रिशमा”।
    रिशमा गर्भवती थी जब उसका पति और सास ने दहेज के लिए ज़हर दे दिया। लाश को जंगल में फेंक दिया। तब से वो चुड़ैल बनी फिरती है।
    एक रात का वाकया है।
    एक लड़का था – नाम गुरप्रीत, उम्र 27 साल। चंडीगढ़ से अमृतसर अपनी नई कार में आ रहा था। रात के ढाई बज रहे थे।
    उसने देखा – सड़क के बीचों-बीच एक औरत खड़ी है, सफ़ेद सूट, दुपट्टा उड़ रहा है, बाल बहुत लंबे। हाथ हिला रही है – रुकने को बोल रही है।
    गुरप्रीत ने सोचा, “रात को कोई औरत अकेली… मदद कर देनी चाहिए।”
    कार रोकी। औरत आई और पीछे बैठ गई।
    जैसे ही बैठी, कार में ठंडी हवा चली और ज़ोर की बदबू आई – जैसे मुर्दाघर की।
    गुरप्रीत ने आईने में देखा – औरत के पैर उल्टे थे।
    उसका दिल धक से हो गया।
    अचानक औरत बोली – बहुत प्यारी आवाज़ में:
    “जी, ज़रा गाना चला दो ना… बड़ा मन है ठुमके लगाने का।”
    और उसने अपना हाथ गुरप्रीत के कंधे पर रख दिया। नाख़ून इतने लंबे कि कंधे में घुस गए।
    गुरप्रीत चीखा नहीं, क्योंकि उसे याद आया उसके ताया जी ने कहा था –
    “अगर चुड़ैल मिले तो एक काम करना… उसका नाम लेके हँसना।”
    गुरप्रीत ने हिम्मत की और बोला:
    “रिशमा जी… तुसी तां बड़ी पुरानी हो… आजकल तां टिकटोक- यूट्यूब ते नाचदी फिरदी ए ना?”
    चुड़ैल चौंकी। पहली बार किसी ने उसका नाम लिया था।
    वो गुस्से में बोली, “तू मेरे को जानता है?”
    गुरप्रीत बोला, “हाँ जी… तुसी तां सात घर छड़ के वार करदी हो ना… साडा घर पंजवा है ?”
    चुड़ैल ज़ोर से हँसी… पर हँसी में डर था।
    फिर उसने गुरप्रीत का गला पकड़ लिया।
    तभी… दूर गुरूद्वारे से गुरबानी की आवाज़ें आने अलगी:
    वाहेगुरु ...वाहेगुरु....वाहेगुरु...वाहेगुरु
    चुड़ैल चीखी – “ना… ना… ये आवाज़ नहीं!!”
    उसका हाथ जलने लगा। पूरा शरीर काँपने लगा।
    वो कार से बाहर कूदी और भागी… भागी… पीपल की तरफ़।
    पर इस बार वो भाग नहीं पाई।
    गुरबानी की आवाज़ ने उसका सारा सम्मोहन तोड़ दिया।
    वो कमज़ोर पड़ गई, जैसे कागज़ की गुड़िया।
    गुरप्रीत ने कार बढ़ाई और पीछे-पीछे गया।
    देखा – चुड़ैल पीपल के नीचे घुटनों पर बैठी रो रही थी।
    उसने आखिरी बार गुरप्रीत की तरफ़ देखा और बोली:
    “मैं फिर आऊँगी… सात घर पूरे होने तक…
    अगली बार कोई अज़ान कोई गुरबानी  नहीं बचेगी मुझे से…”
    फिर वो पेड़ में समा गई।
    सुबह तक सिर्फ़ उसकी सफ़ेद दुपट्टा पेड़ पर लटकता रह गया।
    तब से वो पीपल आज भी है।
    लोग रात को उस रास्ते से गुज़रते हैं तो गाड़ी की स्पीड नहीं कम करते…
    और जो कम कर लेता है, उसकी गाड़ी में अचानक गाना अपने आप बजने लगता है:
    “नाच ले जट्टा… गल लग के…”
    डर लगा ना? 😏🌚
    अब सोच, अगली अमावस को 2:30 बजे कोई आवाज़ आए तो क्या करेगा तू? 🚗💨
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     किस्सा नंबर 3 – मोरपंख वाली रात 

    किस्सा – “मोरपंख वाली रात” (2023 की सच्ची घटना, लोग आज भी गवाह हैं)
    जगह : दिल्ली-हरिद्वार हाईवे, मुरादनगर के पास
    वहाँ एक बहुत पुराना हनुमान जी का मंदिर है, सड़क किनारे। मंदिर के ठीक सामने एक सदियों पुराना पीपल का पेड़। लोग कहते हैं उस पीपल में 150 साल पुरानी चुड़ैल रहती है। नाम था उसका “सावित्री”। सावित्री को उसके देवर ने गर्भवती हालत में जिंदा जला दिया था, लाश को पीपल के नीचे दबा दिया था। तब से वो सात घरों की तलाश में है।
    अब सुनो असली वाकया…
    रात के 3 बज रहे थे।
    एक लड़का था – रोहित शर्मा, मेरठ का। अपनी नई Fortuner में हरिद्वार जा रहा था, माँ को मनौती पूरी करवाने। गाड़ी में उसके साथ उसका दोस्त गौरव भी था।
    जैसे ही गाड़ी उस पीपल के पास पहुँची, अचानक इंजन बंद। लाइटें बंद। पूरा अंधेरा।
    दूर से आवाज़ आई – बहुत मीठी:
    “ओ जी… ज़रा गाड़ी रोक दो ना… मंदिर तक छोड़ दोगे?”
    दोनों ने देखा – एक औरत सफ़ेद साड़ी में, लंबे बाल, हाथ जोड़ के खड़ी है।
    रोहित ने सोचा मंदिर तक है तो कोई बात नहीं, छोड़ देंगे। दरवाज़ा खोला।
    औरत पीछे बैठी।
    जैसे ही बैठी, गाड़ी में बदबू फैल गई। रोहित ने शीशे में देखा – पैर उल्टे।
    दोनों के रोंगटे खड़े हो गए।
    गौरव ने धीरे से रोहित के कान में कहा, “यार… हनुमान चालीसा पढ़!”
    रोहित की जुबान बंद। डर से हिल नहीं रहा था।
    तभी चुड़ैल बोली, “डर मत… बस मंदिर तक छोड़ दो, मैं कुछ नहीं करूँगी।”
    और उसने अपना हाथ रोहित की सीट पर रख दिया। नाख़ून सीधे सीट फाड़ के अंदर घुस गए।
    अचानक गौरव को याद आया – उसकी जेब में मंदिर से लिया हुआ छोटा सा मोरपंख था (वही जो हनुमान जी के चरणों में चढ़ाया था)।
    गौरव ने झट से वो मोरपंख निकाला और चुड़ैल के मुँह पर दे मारा!
    बस एक झटका…
    चुड़ैल ज़ोर से चीखी – “नहीं… ये नहीं!!”
    उसका चेहरा पिघलने लगा। आँखें लाल से काली हो गईं।
    मोरपंख का स्पर्श होते ही उसकी सारी जादूई शक्ति खत्म। वो कमज़ोर पड़ गई।
    फिर गौरव ने जोर से आवाज़ लगाई –
    “जय बजरंगबली! जय हनुमान जी की!!”
    और दोनों ने मिल के हनुमान चालीसा शुरू कर दी।
    चुड़ैल कार से बाहर कूदी और पीपल की तरफ़ भागी।
    पर इस बार वो भागते-भागते लड़खड़ा रही थी। मोरपंख ने उसका सम्मोहन पूरी तरह तोड़ दिया था।
    मंदिर के ठीक सामने पहुँचते ही हनुमान जी की मूर्ति के सामने जो घंटा लटकता है, वो अपने आप बज उठा –
    घंटी… घंटी… घंटी…टन-तन, टन-तन, टन-टन, तन-तन  
    चुड़ैल ज़मीन पर गिर पड़ी। उसका शरीर धुआँ बनने लगा।
    आखिरी बार वो चीखी –
    “मैं… शांत नहीं हुई होऊं… मैं फिर आऊँगी…”
    फिर वो पीपल के तने में समा गई।
    सुबह मंदिर के पुजारी ने देखा – हनुमान जी के चरणों में एक जला हुआ मोरपंख पड़ा था, और उस पर खून के छींटे थे।
    तब से वो मोरपंख आज भी मंदिर में लगा हुआ है।
    और जो भी रात को उस रास्ते से गुज़रता है, मंदिर में ज़रूर रुकता है…
    क्योंकि अब लोग जानते हैं –
    अगर चुड़ैल आए भी, तो बजरंगबली का मोरपंख और एक “जय हनुमान” काफ़ी है।
    बोल, अब डर लगा या बजरंगबली पे भरोसा और बढ़ गया? 🙏🪶🔥

     किस्सा नंबर 4 – ट्रेन का टॉयलेट 

    किस्सा नंबर 4 – “ट्रेन का टॉयलेट” (2024 की ताज़ा घटना, लोग आज भी वीडियो बनाते हैं)
    ट्रेन : 12904 अमृतसर-मुंबई गोल्डन टेम्पल मेल
    डेट : 17 अगस्त 2024, रात के ठीक 2:45 बजे
    कोच : S-6, बर्थ 42-43-44
    तीन लड़के थे – पठानकोट से मुंबई नौकरी लगने जा रहे थे।
    नाम : मनप्रीत (मनु), हरप्रीत (हैप्पी), और कुलदीप (कुल्ला)।
    तीनों देसी गबरू, हनुमान जी के भक्त, गले में लॉकेट, जेब में छोटा-सा हनुमान चालीसा वाला कार्ड नुमा, और एक मोरपंख (जो मनु- मनप्रीत ने वृन्दावन से चढ़ाया हुआ था)।
    रात को ट्रेन भटिंडा के बाद स्पीड में थी।
    अचानक कुल्ला को प्रेशर लगी। वो उठा और S-6 के एक साइड वाले टॉयलेट में घुस गया।
    दरवाज़ा बंद किया। लाइट जल रही थी।
    अंदर घुसते ही ठंडी हवा चली। साये साये और ट्रैन की आवाज़ खड़क -खड़क, खड़ -खड़, खड़क -खड़क!
    कुल्ला ने पैंट नीचे की और बैठा ही था कि बाहर से खट-खट… खट-खट…
    आवाज़ आई – बहुत प्यारी औरत की:
    “ओ जी… अंदर हो कोई? जल्दी खोलो ना… बहुत ज़ोर से लगी है…”
    कुल्ला ने सोचा कोई औरत होगी, बोला, “बस 2 मिनट दीदी, हो गया।”
    पर फिर से खट-खट… और इस बार आवाज़ और करीब से:
    “खोलो ना… मैं भी बैठ जाऊँगी तेरे साथ… जगह तो है…”
    कुल्ला को कुछ अजीब लगा। उसने साइड की दरार से नीचे देखा – दरवाज़े के नीचे से दो पैर दिख रहे थे… उल्टे।
    पंजे पीछे की तरफ़।
    उसका दिल मुँह को आ गया।
    उसने चीख मारनी चाही, पर गला सूख गया।
    तभी उसे याद आया – जेब में मोरपंख है।
    उसने झट से पॉकेट से मोरपंख निकाला और दरवाज़े की साइड में लगी छोटी-सी खिड़की (वेंटिलेटर) से बाहर की तरफ फेंक दिया, साथ में ज़ोर से बोला:
    “भाग जा बो-बीप-बीप  की!”
    बस एक सेकंड…
    बाहर से ज़ोर की चीख आई – “आआआआआआआआआआआआआआआ तो शीग्र ही ट्रैन की खड़क -खड़क, खड़ -खड़, खड़क -खड़क! में विलीन हो गयी !!!”
    जैसे कोई तड़प रहा हो।
    फिर पूरा टॉयलेट हिलने लगा। दरवाज़ा ज़ोर-ज़ोर से बजने लगा।
    कुल्ला ने आँखें बंद कीं और भगवान् का नाम लेंना शुरू कर दिया – जोर-जोर से।
    30 सेकंड बाद सब शांत। बस तरीन की सीटी की आवाज़ जैसे चैन पुलिन की गए हो! 
    जब कुल्ला ने दरवाज़ा खोला तो बाहर कोई नहीं था।
    पर टॉयलेट की दीवार पर लंबे-लंबे नाख़ूनों के निशान थे…(वह नहीं जो पेन पेन्सिल से बनाये होते है)
    और फर्श पर वो मोरपंख पड़ा था थोड़ा जला हुआ लग रहा था – पूरा सिमटा हुआ, काला हो चुका था।
    कुल्ला बाहर आया तो उसकी हालत ख़राब।
    मनप्रीत और हैप्पी ने पूछा, “क्या हुआ?”
    कुल्ला बस इतना बोला:
    “यार… ट्रेन में चुड़ैल भी सफर करती है… और टॉयलेट में जगह माँगती है।”
    तब से वो तीनों जब भी ट्रेन में चढ़ते हैं:
    कभी अकेले टॉयलेट नहीं जाते
    दरवाज़ा खोलने से पहले “जय हनुमान” बोलते हैं
    और जेब में हमेशा दो मोरपंख रखते हैं – एक अपने लिए, एक चुड़ैल के लिए।
    अब तू बता… अगली बार नाइट ट्रेन में प्रेशर लगे तो क्या करेगा?
    सीधा बजरंगबली को याद करेगा ना? 🙏🚂🪶😂

    किस्सा नंबर 5 – कालीघाट की सूंदर चुड़ैल

    किस्सा – “कालीघाट की सूंदर चुड़ैल ” (कोलकाता, काली मंदिर, चौरंगी नहीं… असली कालीघाट)
    कोलकाता के कालीघाट मंदिर के ठीक पीछे, आदि गंगा के किनारे, एक बहुत पुराना पीपल का पेड़ है।
    लोग उसे “चुड़ैल वाला पीपल” कहते हैं।
    मंदिर में दिन-रात भक्तों की भीड़, घंटों की आवाज़, माँ काली की बलि… लेकिन रात 1 बजे के बाद वो पीपल बिल्कुल सुनसान हो जाता है।
    असल किस्सा 2022 का है…
    एक लड़का था – नाम अर्णव चटर्जी, दक्षिणेश्वर का।
    उसकी गर्लफ्रेंड रिया को कोई संगीन बीमारी हो गई थी, डॉक्टर जवाब दे चुके थे केवल भगवन का ही सहारा था।
    तांत्रिक ने कहा, “कालीघाट में रात को 3:15 बजे माँ को लाल मोरपंख चढ़ाओ, और पीपल के नीचे एक नारियल फोड़ो… तब ही बचेगी।”
    अर्णव डरते-डरते तैयार हुआ।
    रात 2:45 बजे वो मंदिर पहुँचा।
    पुजारी ने कहा, “बेटा, पीपल के नीचे मत जाना… आज अमावस है, वो आती है।”
    अर्णव ने कहा, “माँ काली हैं ना… डर किस बात का?”
    वो लाल मोरपंख और नारियल लेकर पीपल के नीचे पहुँचा।
    अंधेरा था, सिर्फ़ मंदिर की एक लाल लाइट दूर से चमक रही थी।
    नारियल फोड़ा। मंत्र पढ़ा। लाल मोरपंख माँ के नाम का जयकारा हाथ जोड़ के लगाकर सात बार उलटा फिर सात बार सीधा मन्त्र पड़ा फिर आपने सर से घुमा कर ज़मीन पर उल्टा रख दिया। (जैसा उसे कहा गया था)
    तभी हवा चली…साये साये - होओओओ - श .......
    और सामने एक सुन्दर औरत प्रकट हुई – पूरी लाल साड़ी, बाल घने खुले पर घुंगराले, गले में मगल सूत्र, आँखें लाल जैसे मादकता छलक रही हों … पर पैर उल्टे।
    हाँ ... वो चुड़ैल थी – मंदिर के ठीक पीछे 200 साल पहले एक तांत्रिक ने जिस औरत की बलि दी थी, वो आज तक भटक रही थी।
    लोग उसे “लाल परी” भी कहते हैं।
    चुड़ैल बोली बंगाली में –
    “एइ मोरपंख टा अमाके दे… आज 100 साल बाद कोई लाल मोरपंख लाया है मेरे लिए…”
    अर्णव काँपने लगा।
    चुड़ैल पास आई। उसका हाथ ठंडा था। उसने मोरपंख उठाया और अर्णव के गाल पर फेरा।
    अर्णव को लगा उसका शरीर पत्थर हो रहा है।
    तभी मंदिर से घंटा अपने आप बज उठा –
    घंटी… घंटी… घंटी… यह घंटी का सुर्रिला बोल उसके कानो में आघात कर रहा था और वह व्याकुल हो रहा था ओह.. आह.. हय ! 
    और माँ काली के मंत्र की आवाज़ आई –
    “जय माँ काली… जय जय काली…”
    चुड़ैल चीखी – “ना… एइ मोरपंख लाल है… ये मेरी शक्ति बढ़ाएगा नहीं, मुझे जला देगा!”
    क्योंकि लाल मोरपंख माँ काली का प्रतीक होता है, चुड़ैल का नहीं।
    चुड़ैल ने मोरपंख फेंका और भागी… आदि गंगा की तरफ़ मनो आपने पाप धोने जा रही हो।
    पर जैसे ही वो गंगा के पानी को छूने वाली थी, लाल मोरपंख अपने आप हवा में उड़ा और चुड़ैल के सीने में घुस गया।
    ज़ोर की चीख… और चुड़ैल जलकर राख हो गई।
    सुबह पुजारी ने देखा – पीपल के नीचे सिर्फ़ एक जला हुआ लाल मोरपंख और थोड़ी राख पड़ी थी।
    और सबसे हैरानी की बात –
    अर्णव की गर्लफ्रेंड रिया उसी रात 3:30 बजे अचानक ठीक हो गई।
    डॉक्टर आज तक नहीं समझ पाए कैसे हुआ। एंड मिडिल मिस्ट्रीज की किताब में लिख कर शोध के लिए उप्लब्फ करा गए !
    तब से कालीघाट में एक नई परंपरा शुरू हो गई –
    जो भी मन्नत माँगता है, वो लाल मोरपंख चढ़ाता है…
    और रात को कोई भी उस पीपल के नीचे नहीं रुकता।
    कहते हैं अब वो चुड़ैल नहीं आती…
    क्योंकि माँ काली ने खुद अपना लाल मोरपंख उस पर चला दिया।
    जय माँ काली 🙏🔴🪶
    अब तू बता… कालीघाट जाएगा कभी रात को? 😏 कमेंट में हाँ या न लिखो! 


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